बलौदाबाजार/रायपुर । छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के पलारी क्षेत्र अंतर्गत ग्राम कोनारी में प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग विद्यमान है, जहां मंदिर के पीछे एक ताम्रपत्र मिला था, जो 1216 ईसवी की है, यह ताम्रपत्र पुरातत्व विभाग के पास जमा है।
उक्त ताम्रपत्र को प्रतापमल्ल 1198- 1222 ईसवी शासनकाल की बताई गयी है। वहीं पर प्राचीन काल का पुराने ईटोंं का अवशेष है। एक ईंट एक फीट लंबी व 8 इंच चौड़ी है जो अभी भी मौजूद है। तालाब के किनारे प्राचीन शिवलिंग की जलहरी भी पाई गई है, जो काफी प्राचीन कारीगरों द्वारा तरासी गई है। साथ ही मंदिर परिसर के आसपास प्राचीन काल की कई मूर्तियां व अवशेष अभी भी विद्यमान हैं। ग्रामीण यह भी बताते हैं कि यह प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग पहले काफी छोटा था जिसका आकार और लंबाई बढ़ती जा रही है। मंदिर रेत व चूना से निर्मित है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ग्राम कोनारी में एक लोहार रहता था। एक दिन लोहार के कार्यस्थल पर ही शिवलिंग थोड़ा सा दिखाई देने लगा। लोहार ने उस पर अपना घन प्रहार कर दिया, जिसके परिणाम स्वरूप शिवलिंग दो भागों में बंट गया। जिसका निशान आज भी शिवलिंग पर मौजूद है। लेकिन उस लोहार का कोई भी नामोनिशान मौजूद नहीं है। उसका पूरा परिवार ही समाप्त हो गया।
ग्रामीण बताते हैं कि गांव के मालगुजारों ने इसी शिवलिंंग को खुदवाकर अपने घर ले जाने की कोशिश की लेकिन उठा नहीं पाये। इसके बाद वे उसे वहीं छोड़कर घर चले गए। रात को स्वप्न में भगवान शिव जी ने मालगुजार को उसी स्थान पर मंदिर निर्माण कराने को कहा। मालगुजार ने मंदिर निर्माण कराया और शिवलिंग की विशेष पूजन अर्चना की, जिसके बाद गांव के कई व्यक्तियों की मनोकामना पूरी हुई। एक साधु द्वारा शिवलिंग का नामकरण लोपेश्वर महादेव के नाम से किया गया।
कोनारी में महाशिवरात्रि में लगता है भव्य मेला
ग्राम कोनारी में प्रत्येक महाशिवरात्रि में भव्य मेला का आयोजन युवा जन कल्याण समिति द्वारा किया जाता है। भजन-कीर्तन के बाद प्रसाद स्वरूप मेले में भोजन-भंडारा की व्यवस्था की जाती है।
12वीं शताब्दी में राजा मल्लक के जमाने का है यह मंदिर : ग्रामीण
ग्रामीण फेरहा राम साहू बताते हैं कि 12वीं शताब्दी में राजा मल्लक के जमाने का यह मंदिर, अरिहंत की पुस्तक में दर्शाया गया है। पहले खुदाई होने पर पता चला कि शिवलिंग की लंबाई डेढ़ फीट ऊपर, पूरी लंबाई 5 फीट है। ऊपर की मोटाई 51 इंच, जमीन के नीचे स्तंभ चौड़ा और ऊपरी हिस्सा गोल है। मालगुजार द्वारा नयी गाड़ी में शिवलिंग को ले जा रहे थे तभी उनका गाड़ी आगे नहीं बढ़ पायी और वहीं टूट गयी। इसके बाद रात में उन्हें स्वप्न आया और वहीं मंदिर निर्माण कराने को कहा, जिसके बाद मालगुजार द्वारा वहीं मंदिर निर्माण कराया गया। यहां आने पर लोगों की मनोकामना पूरी होती है। हर सोमवार को विशेष पूजा अर्चना की जाती है। एक कहावत यह भी है कि, एक लोहार द्वारा शिवलिंग पर घन प्रहार किया गया था ,जिसके बाद लोहार का पूरा परिवार समूल नष्ट हो गया है, ऐसा हमारे बुजुर्ग लोग बताते हैं। शिवलिंग पर घन का निशान आज भी है। एक साधु ने शिवलिंग का नामकरण लोपेश्वर महादेव के नाम से किया।
ग्रामीण भागीरथी साहू ने बताया कि प्राचीन शिवमंदिर के चारों तरफ अहाता का निर्माण होना आवश्यक हो गया है। साथ ही मंदिर के पीछे खाली जगह में रामायण व भजन-कीर्तन इत्यादि के लिए रंगमंच बन जाने से बैठने की उचित व्यवस्था हो जाती है। साथ ही साथ साफ-सफाई व उचित रखरखाव भी होगा। महाशिवरात्रि में दर्शनाार्थियोंं को मंदिर परिसर में पेजयल के लिए परेशानी होती है। मंदिर परिसर में पेयजल की उचित व्यवस्था करने से लोगों को पानी के लिए इधर उधर भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
मालगुजार के आठवीं पीढ़ी में राजकुमार पटेल ने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा कोनारी में शिवमंदिर का निर्माण कराया गया था। लेकिन अभी मंदिर काफी पुराना व जर्जर हो चुका है। मंदिर का नये सिरे से नवीनीकरण आवश्यक है।
ग्रामीणों द्वारा शिव जी के प्राचीन मंदिर परिसर में अहाता निर्माण, भजन-कीर्तन के लिए रंगमंच, मंदिर का पुन: नवीनीकरण, पेयजल इत्यादि की व्यवस्था करने की मांग की गई है।
मंदिर पहुंच मार्ग
मंदिर रायपुर से बलौदाबाजार मार्ग पर पलारी तहसील अंतर्गत ग्राम अमेरा से 6 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित है।
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