हिन्‍दी के श्रेष्‍ठ आख्‍यानक प्रगीत: डॉ. बलदेव

डॉ. बलदेव जी ने आधुनिक हिन्दी काव्य में आख्यानक प्रगीतों का अनुशीलन अपने शोध-प्रबंध में बड़ी विद्ग्धता तथा विद्वता के साथ किया है। हिन्दी काव्य समीक्षा जगत में लिरिकल पोइट्री के लिए गीत शब्द का प्रचलन होता रहा है, प्रगति भी उसी का पर्याय है। गीत गीति में अंतर है, गीत राग-रागनियों से झंकृत होता है और गीति यद्यपि संगीत-लय से विरहित नहीं होता फिर भी गीत नहीं वन जाता। गीति में कवि अपने हृदय के उत्पीड़न को जिसका पर्यवसन हर्ष या विषाद में हो सकता है, उच्छवासित करता है। प्रगति में गीति के साथ कथायें गुंफित रहती है।

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