छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय गायक-अभिनेता श्री भैयालाल हेड़ाऊ

 छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय गायक-अभिनेता, आदर्श शिक्षक और उससे भी बढ़ कर निश्छल-निर्मल व्यक्तित्व के मालिक श्री भैयालाल हेड़ाऊ का जन्म 08 अक्टूबर 1933 को हुआ था। छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी राजनाँदगाँव उनकी कर्म-भूमि रही। ऑर्केस्ट्रा के दौर में उनके नाम से भीड़ उमड़ पड़ती थी। उन्हें छत्तीसगढ़ के हेमन्त कुमार के नाम से भी जाना जाता था।

एक बार मुम्बई के षणमुखानन्द हॉल ( उस जमाने का सबसे प्रतिष्ठित हॉल) में भैयालाल हेडाऊ जी ने फिल्मी दुनिया के पार्श्व-गायक हेमन्त कुमार के सम्मुख उन्हीं के गीत गाये थे तब पार्श्व-गायक हेमन्त कुमार ने उन्हें कहा था - "मेरे गानों को आप मुझसे बेहतर गाते है"। यह वाक्य उनके लिए किसी भी सम्मान से बड़ा सम्मान था।
भैयालाल हेड़ाऊ जी को मुम्बई में बतौर पार्श्व गायक स्थापित होने का ऑफर भी मिला था किंतु वे छत्तीसगढ़ की माटी से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने इस ऑफर को बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया था।
1971 का वर्ष भैयालाल हेड़ाऊ जी के लिए एक ऐसा अनमोल उपहार लेकर आया कि गायन प्रतिभा के साथ ही उनकी अभिनय तथा नृत्य प्रतिभा को भी नयी ऊँचाइयाँ मिलने लगीं। इस वर्ष उन्हें दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी के ऐतिहासिक लोक कला मंच "चंदैनी-गोंदा" से जुड़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। चंदैनी गोंदा के लिए उन्होंने अनेक अविस्मरणीय गीत गाये।
छन्नर-छन्नर पैरी बाजे, खन्नर-खन्नर चूरी,
हाँसत कुलकत मटकत रेंगे बेलबेलहिन टूरी।
दीया के बाती हा कहिथे, सचे बाते ला वो कहिथे,
जरे के बेरा, जरे के बेरा
हम तोरे सँगवारी कबीरा हो, हम तोरे सँगवारी
सोन के चिरइया बोले का रे
झन आंजबे टूरी आँखी मा काजर,
बिन बरसे रेंग देही करिया बादर, छूट जाही ओ परान,
हँस-हँस को कोन हा खवाही तोला पान,
हाय-हाय नइ बाँचे चोला छूट जाही ओ परान
तोर बाली हे उमरिया करौंदा बतावँव काला ओ
माटी होही तोर चोला रे संगी, माटी होही तोर चोला
तोर धरती तोर माटी रे भइया
मन डोले रे माघ फागुनवा
संगी के मया जुलुम होगे रे… (इस गीत में उन्होंने गाया नहीं है लेकिन उनकी आवाज की मधुर गूंज गीत के साथ साथ चल कर संगीत के एक नए प्रयोग का प्रमाण देती है।)
इन गीतों पर यदि गौर करेंगे तो ददरिया की उमंग, त्यौहारों की मस्ती, प्रेम की पराकाष्ठा, विरक्ति, आसक्ति, गौरव, जीवन की निस्सारता, आध्यात्मिकता अर्थात् जीवन के सभी भावों को उन्होंने अपनी आवाज में बड़ी ही सरलता,सहजता और कुशलता से उतारा है।
चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका शैलजा ठाकुर जी थीं। भैयालाल हेड़ाऊ जी उनके स्टेप्स को हूबहू अनुसरण करने के अलावा अपने भी मौलिक स्टेप्स के जरिये नृत्यों में प्राण फूँक देते थे। ऐसे दृश्य जिनमें वे मंच पर नहीं होते थे, अन्य कलाकार उन दृश्यों पर अभिनय कर रहे होते थे, इसके बावजूद हेड़ाऊ जी के चेहरे पर उस दृश्य के सारे भाव आते-जाते रहते थे। कहने का आशय यह है कि अभिनय उनकी रगों में दौड़ता रहता था शायद इसी कारण सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता सत्यजीत रे की पारखी नजरों ने उन्हें सद्गति फ़िल्म में ओम पुरी और स्मिता पाटिल जैसे सशक्त कलाकारों के साथ लिया था।
आज भैयालाल हेड़ाऊ जी भले ही सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं हैं किन्तु उनकी स्मृतियाँ और उनकी आवाज हमारे आस-पास ही हैं और वे हमें अपनी मौजूदगी का एहसास दिला रहे हैं।
आइए आज हम आपको रामरतन सारथी जी का लिखा और भैयालाल हेड़ाऊ जी का गाया एक दुर्लभ गीत सुना रहे हैं। यह चंदैनी गोंदा के मंच की रिकार्डिंग नहीं है। दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी के निधन के उपरान्त चंदैनी गोंदा के कलाकारों ने डॉ. सुरेश देशमुख जी के संयोजन में ग्राम बघेरा में दाऊ जी को स्वरांजलि समर्पित की थी। यह उसी भावभीने कार्यक्रम की रिकार्डिंग है।
इस दुर्लभ गीत को डॉ. सुरेश देखमुख जी ने उपलब्ध कराया है। अतः उनका आभार व्यक्त करते हुए भैयालाल हेड़ाऊ जी की आवाज में, गीतकार रामरतन सारथी जी का लिखा यह गीत "सोन के चिरइया बोले का रे" आपको सुना रहे हैं। इस गीत में हारमोनियम सुनकर आप संगीतकार खुमानलाल साव जी की उपस्थिति का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।
संकलन - अरुण कुमार निगम
वीडियो ग्राफिक्स - श्री मिलन मलरिहा

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