
जब हम, लोचनप्रसाद जी की ओर निहारते हैं तो आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है उन्हें हम किस तर प्रस्तुत करें। वे गद्यकार थे-पद्यकार भी, निबंध उन्होंने लिखा और नाटक भी। हिन्दी,
छत्तीसगढ़ी, अंग्रेजी, उड़िया, संस्कृत के भी समान अधिकारी। लेखक थे संपादक भी थे। इतिहास और पुरातत्व संबंधी कार्यों से नई स्थापाएं उन्होंने की। यह सोचकर दंग रह जाना पड़ता
है कि कोई हाड़-मांस का पुतला स्वयं को इतने आयामों के साथ प्रस्तुत कर सकता है। अदूभुत, विलक्षण और अतुलनीय जैसे शब्द भी लोचनप्रसाद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए हलके
लगते हैं। कोई ऐसा शब्द नहीं मिल पाता मात्र जिसके उच्चारण से लोचनप्रसाद जी का बहुविध व्यक्तित्व सामने आए।
पं. लोचनप्रसाद जी का जन्म 4 जनवरी 1886 को हुआ। 'जेखर जइसन दाई-ददा, तेखर वइसन लइका ' - छत्तीसगढ़ी में प्रायः ऐसा कहा जाता है। घर के संस्कारों ने उन्हें योग्य बनाया।
उच्च कोटि की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की गई थी। उनके पिता पं. चिंतामणि पांडेय ने बालपुर में अपनी माताजी की स्मृति में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। यहां भारत जीवन जैसी
साहित्यिक पत्रिका मंगवाई जाती। धर्म और साहित्य के अलावा सूर, कबीर, तुलसी, भारतेंदु साहित्य यहां संकलित था। उन्होने बालपुर में ही एक पाठशाला स्थापित की थी। पार्वती
पुस्तकालय और पाठशाला का पूरा लाभ लोचनप्रसाद ने उठाया। संबलपुर से मिडिल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर उच्च शिक्षा के लिए वे काशी गए, किंतु पितामही के ममतापूर्ण आग्रह ..