वृक्ष में तब्दील हो गयी औरत - डॉ. बलदेव की कविताएं

नई कविता में छन्दों की तोड़-फोड़ और उनकी दुरूहता मुझे पसन्द नहीं। पर इन कविताओं में इनके सिवा कुछ और बात भी है, कवि की विदरधता पद-पद पर प्रकट होती है। सिसरिंगा की घाटियाँ बीजा, साजा, साल की छाँव में लुक-छिप छलांगता शशक-शावक वाली घाटियाँ करील-कुंज की छाँव में जरा विलग कर, पथिक से उन्हें बाँह में गह लेने, आँख में भर लेने, उन्हें गाने, उन्हें जीने की मनुहार करती हैं। इनकी सहेलियाँ गोंड, महकूल और बैंगा की बेटियाँ 'दोनों भर मधु में पगे चिरोंजी तुम्हें खिलाएंगी, फिर नन्दन झरिया का पता बतावेंगी। पलास के फूलों की सिन्दूरी माला पहनावेंगी।' आंचलिकता की यह एक सुन्दर झाँकी है, प्रकृति चित्रण का नमूना भी। कहीं झरोखे से झाँककर चाँदनी मजदूर दुल्हन को गुदगुदाती है तो कहीं शरद पूर्णिमा को, वृन्दावन के रास की सांस्कृतिक स्मृति जाग उठती है। 'कोयल जब आधी-आधी रात को कूकती है तो टीस भरी आग्र मंजरी की मधु सी मादक गंधमयी भाषा प्राणों में बहने लगती है। वह भाषा मनुष्य से मनुष्य को, फूलों और पत्तियों को यहाँ...

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