श्री विधि से लगाई गई धान की कटाई शुरू : छोटी जोत वाले किसानों के लिए श्रीविधि पद्धति बनी फ़ायदेमंद

नारायणपुर, मानसून के लगातार रूठने और कम होती बारिश के कारण पिछले कुछ वर्षों में भारत के कई इलाकों में धान की पैदावार प्रभावित हुई है। ज्यादा सिंचाई खर्च के चलते अन्नदाताओ (किसानों ) का मुनाफ़ा कम होता जा रहा था। ऐसे किसानों के लिए श्रीविधि लाभ देने वाली साबित हुई है। जिले में खरीफ में धान मुख्य फसल है। छत्तीसगढ़ के अन्य ज़िलों से यहां सामान्यता मानसून में बारिश ठीक होती है। लेकिन कभी परिस्थिति विपरीत भी होती है। कम बारिश के चलते पैदावार कम और घाटा बढ़ता जा रहा था। जिले में सिंचाई के साधन सीमित है।
       
ज़िले के अधिकांश किसानों ने श्री विधि को अपना कर धान की बुआई की थी। यह उन्नत तकनीक मानी जाती है। जिले के लगभग 20-25 गांव महिमागवाड़ी, बम्हनी, एड़का, गौरदण्ड, बड़गांव, नयानार, चिपरेल, कुकड़ाझोर, रेमावंड, झारा, राजपुर, बागडोंगरी, तारागांव, उड़िदगांव और बोरावंड आदि के लगभग 3 हजार किसान से अधिक किसान इस श्रीविधि से धान की फसल ले रहे हैं। इस विधि से धान की बुवाई करने से पहले धान के पौधों को नर्सरी में सही रुप से तैयार किया जाता है और पौधे से पौधे और लाइन से लाइन की दूरी लगभग 10-12 इंच रखी जाती है। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई । अब किसान धान की पक चुकी फ़सल को हर तरफ़ काटते देखें जा सकते है।

छोटी जोत वाले किसानों के लिए श्रीविधि तकनीक काफ़ी लाभदायक सिद्ध हो रही है। अब गाँव के पुरुष किसान के साथ महिला किसान भी श्रीविधि से खेती करती हैं। महिलाओं ने खरीफ 2018 में श्रीविधि से धान की खेती की और बेहतर उत्पादन प्राप्त किया। इस बार भी ख़रीफ़ में किसानों की फ़सल अच्छी हुई है। समिति में सभी महिलाएं एक दूसरे के खेत के कार्यों में सहयोग करती हैं। जिससे उन्हें मजदूर की जरूरत नहीं रहती है। कम पानी और लागत से इस विधि से बेहतर पैदावार हो रही है। जिस खेत से मात्र दो क्विंटल धान पैदा होता था, अब उसी खेत में चार से पांच क्विंटल धान पाकर उन्हें बहुत खुशी हो रही है। अब गाँव में अन्य महिलाएं भी काफी प्रभावित है। महिला किसान समिति में यह चर्चा है कि जिन सदस्यों के पास कम मात्रा में खेती है उन महिलाओं का अलग समिति का गठन किया जाएगा।

महिला कृषक मीना साहू भी इसी तकनीक से कर रही हैं खेती
उड़िदगांव के कृषक सर्वश्री लच्छूराम साहू, रवनू सोरी, गाण्डोराम सोरी और मांगीलाल साहू का कहना है कि पहले वह अपने खेतों में परम्परागत छिड़कवा विधि से धान की खेती करते थे। जिसमें धान की पैदावार कम होती थी, लेकिन अब कृषि अधिकारियों की समझाईष के बाद श्रीविधि पद्धति को अपनाकर धान की खेती कर रहे हैं। जिससे परम्परागत खेती की तुलना में धान के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है। इसमें खरपतवार भी कम होता है। वहीं इसी गांव की महिला कृषक सुश्री मीना साहू इसी बात से इत्तेफाक रखते हुए कहती है कि वे भी पहले पुरानी पद्धति धान की फसल लेती थी। लेकिन गांव के अन्य लोगों की देखा-देखी उन्होंने ने भी श्रीविधि तकनीक से खेती करना शुरू किया। जिससे उन्हें काफी फायदा हुआ। पहले मात्र उनकी जमीन में दो-तीन क्विंटल धान पैदा होता था, अब उसी खेत में चार से पांच क्विंटल धान पाकर उन्हें बहुत खुशी होती है। उन्होंने बताया कि इस विधि से बीज भी कम लगता है। एक एकड़ में दो किलो और पानी भी कम लगता है।

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