महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बहुमत तो मिल गया लेकिन दोनों दलों में तनातनी देखने को मिल रही है. यानी कहा जा सकता है कि तुम्हीं से मोहब्बत और तुम्हीं से अदावत. शिवसेना के तेवर तल्ख हैं और वह भाजपा पर किसी विपक्ष की तरह हमलावर है. वजह भी है. भाजपा का प्रदर्शन इस बार के चुनाव में बहुत अच्छा नहीं रहा है. उसके सीटों की तादद घटी है और इससे शिवसेना बमबम है. वह फिफ्टी-फिफ्टी के फार्मूले पर मुखर है और भाजपा फिलहाल खामोशी से सारा तमाशा देख रही है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने 161 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर लिया है. भाजपा को चुनाव में 2014 के मुकाबले 22 सीटों का नुकसान हुआ, तो कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन 99 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहा. एनसीपी ने चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया है. शिवसेना का प्रदर्शन पहले की तरह बरकरार है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे चुनाव नतीजों के बाद आक्रमकता के साथ ताल ठोक रहे हैं.
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में एक लेख के जरिए भाजपा और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को घेरने की उन्होंने कोशिश की है. लेख में कहा गया है कि मुख्यमंत्री फडणवीस एक तेल लगाए पहलवान बनकर अखाड़े में कूदे थे लेकिन बूढ़े एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने उन्हें पटखनी दे दी. मुखपत्र में पवार के नेतृत्व की तारीफ में लिखा गया है कि वे चुनाव में दमदार और जिद के साथ लड़े. मुख्यमंत्री ने खुद को तेल लगाए हुए एक पहलवान की तरह मैदान में उतारा पर चुनाव परिणाम के बाद उन्हें यह स्वीकार करना होगी कि तेल थोड़ा कम पड़ गया. माटी की कुश्तीवाले उस्ताद की तरह एनसीपी प्रमुख ने उन्हें पटक दिया.
लेख में यह भी कहा गया है कि चुनाव परिणाम से ‘सत्ताधीशों’ को सबक मिला है. साफ है अब सत्ता की धौंस नहीं चलेगी. महाराष्ट्र की जनता ने गठबंधन को 161 सीटें दी हैं लेकिन इस महाजनादेश नहीं कहा जा सकता है. चुनाव से पहले बेहद कमजोर कही जा रही कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत हासिल की जबकि एनसीपी 50 सीटें जीतने में कामयाब हुई. एनसीपी ने इस चुनाव में बड़ी छलांग लगाई. भाजपा का नाम लिए बिना लेख में हमले किए गए हैं. लेख में यह भी कहा गया कि सत्ता के दुरुपयोग कर राजनीतिक रोटियां सेंकने से किसी को भी खत्म नहीं किया जा सकता. यह चुनाव नतीजा ऐसा है जैसे अब किसी की धौंस नहीं चलेगी. अब चुनाव खत्म हो चुके हैं और हम जनता की सेवा करने जा रहे हैं. कौन हारा और किसे फायदा हुए इसका मंथन कुछ समय बाद किया जाएगा. शिवसेना के तेवरों ने भाजपा की परेशानी तो बढ़ा ही दी है. उसने फिलहाल इस पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की है. (राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर सटीक विश्लेशण के लिए पढ़ें और फॉलो करें).