किस्म जमीन
रायपुर जिले में औसत पच्चीस लाख एकड में खेती होती है। दो लाख
एकड पडुती जमीन है, छ: लाख एकड दुफसली है। जमीन की किस्म में
कन्हार, डोरसा, मटासी, भाटा, पालकछार, पट पर कछार और काप हैं। काली
या भूरी जमीन कन्हार कहलाती है। कटासी कुछ सफेदी और पिलाहट लिये
| रहती है, डोरसा आधी कन्हार और आधी मटासी का मिश्रण है। भाट हल्की
| और पथरीली जमीन होती है। पालकछार नदियों के किनारे की जमीन बडी
उपजाऊ रहती है, पटपा कछार रेतीली होती है । महानदी के कछार में सफेद
रेहवाली अत्यंत उपजाऊ जमीन को कांप कहते हैं। कई कारणों से जमीन में
दोष आ जाते हैं, जैसे कहीं-कहीं नमक की रसम रहने से उपज में फरक
पड जाता है, ऐसे खते को चपरहा कहते हैं।
महानदी के बूडों से जो खेत कडे पडु जाते हैं, उन्हें लपकहा कहते
हैं। ऐसे ही खसरी, कुढरी आदि मुरमीली, पथरीली, रेतीली जमीनों
के स्थानीय नाम हैं । विविध मौकों के अनुसार घनहाई जमीन के नाम बहरा
गमार, ओरकहा, रसनहा आदि रख लिये जाते हैं। बहरा मिलान को कहते
हैं, गमार समान, परंतु नीचा रहता है । और नुकीला होता है। आबादी के पास
के खेत सनही कहलाते हैं । जिस जमीन में गेहूँ पैदा हो सकता है, उसे भरी
कहते हैं। ऊँची-नीची को टिकरा कहते हैं। जिस खेत में नाले या भरके पड
जाते हैं, उन्हें भरकेला कहते हैं। कन्हार और डोरसा में गेहूँ पकता है, भाटा
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